कालेधन पर लगाम लगाने का वाला कानून एंटी जनरल एंटी अवॉयडेंस रूल्स (गार) एक अप्रैल से सरकार ने लागू कर दिया। ख़बरों की माने तो एक अप्रैल से पहले भारतीय कंपनियों में विदेशी कंपनियों द्वारा हिस्सदारी खरीदने की लगभग 150 डील्स हुई। यही नहीं ऐसा पहली बार हुआ जब डील साइन होने के 48 घंटों के बाद शेयर ट्रांसफर कर दिए गए। प्राइवेट इक्विटी की बात करें तो 3.6 अरब डॉलर यानी उनके कुल इनवेस्टमेंट का करीब दो तिहाई जनवरी-मार्च क्वॉर्टर में हुआ।
आज से पहले भारत में निवेश करने वाली कंपनियां टैक्स देने से बचती थी। क्योंकि भारत का कई देशों के साथ द्विपक्षीय टैक्स समझौता है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह होता था कि विदेशों में कालाधन रखने वाले लोग इन देशों के जरिये कालाधन सफ़ेद करके भारत ले आते थे। गार की अनिवार्यता तब भी समझी गई जब वोडाफोन ने भारत में हच को खरीदा। भारत सरकार का कहना था कि यह सौदा कर के दायरे में आता है जिसकी रकम दो अरब डॉलर से ज्यादा बनती है. उधर वोडाफोन का तर्क था कि यह सौदा विदेश में हुआ है तो भारत सरकार को कर देने का कोई मतलब नहीं बनता।
अब गार के लागू होने के बाद भारत ने निवेश करने वाली कंपनियों को टैक्स के दायरे में आना होगा। गार लागू होने से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि अपने काले धन को दूसरे देशो के जरिये भारत में निवेश करने वालों पर लगाम लगेगी। हालांकि, गार उन देशों के निवेशकों पर गार लागू नहीं होगा जिनके साथ हुए कराधान अपवर्जन समझौते (डबल टैक्सेशन एवायडेंस एग्रीमेंट-डीटीएए) में लिमिटेशन ऑफ बेनिफिट प्रावधान (एलओबी) नामक प्रावधान भी शामिल है

अब इसे टैक्स चोरी को रोकने के लिए लागू करने की तैयारी है। अप्रैल से इनकम टैक्स ऑफिसर मॉरीशस या दूसरे विदेशी टैक्स हेवेन्स से होने वाले हर इनवेस्टमेंट की जांच करेगा। रूल के मुताबिक, विदेशी निवेशकों को भारतीय टैक्स ऑफिसर्स को यकीन दिलाना होगा कि जिस फर्म के जरिये इनवेस्टमेंट किया गया है, वह जेनुइन कंपनी है और उसमें एंप्लॉयी काम करते हैं। उसका पता भी वास्तविक है। अगर कोई इनवेस्टर गार टेस्ट पर खरा नहीं उतरता तो उससे एक्स्ट्रा टैक्स की मांग की जा सकती है।
दुनिया का सबसे बड़ा टैक्स हेवन माने जाने वाले मॉरीशस और भारत के बीच टैक्स ट्रीटी में बदलाव के बाद ऐसी डील्स में बढ़ोतरी हुई है। अप्रैल से इनकम टैक्स ऑफिसर मॉरीशस या दूसरे विदेशी टैक्स हेवेन्स से होने वाले हर इनवेस्टमेंट की जांच करेगा। रूल के मुताबिक, विदेशी निवेशकों को भारतीय टैक्स ऑफिसर्स को यकीन दिलाना होगा कि जिस फर्म के जरिये इनवेस्टमेंट किया गया है, वह जेनुइन कंपनी है और उसमें एंप्लॉयी काम करते हैं। उसका पता भी वास्तविक है। अगर कोई इनवेस्टर गार टेस्ट पर खरा नहीं उतरता तो उससे एक्स्ट्रा टैक्स की मांग की जा सकती है