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राजस्थान की इस लोककथा के अनुसार रावण का वध प्रभु राम ने नहीं बल्कि लक्ष्मण ने किया था, जाने आखिर कैसे ?

राजस्थान की इस लोककथा के अनुसार रावण का वध प्रभु राम ने नहीं बल्कि लक्ष्मण ने किया था, जाने आखिर कैसे ?
In धार्मिक तथ्य

हम बचपन से ही यह कथा सुनते आये है की रामायण की कथा में भगवान श्री राम द्वारा रावण का वध हुआ था. परन्तु वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण की कथा के बिलकुल विपरीत राजस्थान की एक लोक कथा है जिसमे रावण का वध राम ने नहीं बल्कि उनके अनुज लक्ष्मण ने किया था.

राजस्थान की इस लोककथा के अनुसार रावण का वध प्रभु राम ने नहीं बल्कि लक्ष्मण ने किया था, जाने आखिर कैसे ?

वाल्मीकि रामयण के अनुसार यह बतलाया गया की रावण की मृत्यु का रहस्य उसके नाभि में छुपे अमृत कलश में है लेकिन राजस्थानी लोककथाओं के अनुसार लंका नरेश रावण की जान सूर्य देव के एक घोड़े की नासिका में छिपी हुई थी. लक्ष्मण द्वारा उसे मुक्त कर रावण का अंत किया गया था.

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राजस्थानी की इस लोककथा में माता सीता की अनुजा उर्मिला को कहि कोई जिक्र नहीं किया गया है इस कथा में लक्ष्मण को ब्रह्मचारी बताया गया है. रावण को यह वरदान था की उसकी मृत्यु तभी होगी जब कोई बृह्मचारी व्यक्ति सूर्य देव के उस घोड़े के पास जाए जिसकी नासिका में उसके प्राण छुपे है तथा उसे पहचान कर नष्ट कर दे.

राजस्थान में बसे जैन समुदाय के लोगो को इस कथा में विशवास है तथा वे यह मानते है की रावण का वध राम के हाथो नहीं लक्ष्मण के हाथो हुआ था. इसलिए वहां भगवान श्री राम को एक अहिंसक देव के रूप में पूजा जाता है.

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राजस्थान के नायक समुदाय के गवयै जिन्हे भोपू कहा जाता के अनुसार रावण का वध प्रभु राम के अनुज लक्ष्मण के हाथो ही हुआ था तथा रावण ने अपने पूर्व जन्म में लक्ष्मण का वध किया था.

मान्यता यह भी है की सूपर्णखा लक्ष्मण से विवाह करना चाहती थी परन्तु लक्ष्मण द्वारा उसका पस्ताव ठुकरा दिया गया था इसलिए लक्ष्मण को अपने अगले जन्म में सूपर्णखा से विवाह करना पड़ा था.

राजस्थान में एक रामायण की कथा के आधार के पर पबूजी नाम का एक नया चरित्र आया तथा इसका संबंध श्री राम, लक्ष्मण व सीता के पूर्व जन्म से जोड़ा गया. पबूजी की कथा के बारे में बताया जाता है की यह लोककथा 600 वर्ष पुरानी है तथा पबूजी अलौकिक शक्तियों के स्वामी थे.

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राजस्थान के भोपो समुदाय के लोग निम्नवर्ग के माने जाते है तथा इनका परिवार सदिया से सारंगी जिसे यहाँ रावण हत्था कहा जाता है बजाते आ रहे है. ये अपने गाने में रावण के अंत की गाथा गाते है.

इन लोककथाओं के अनुसार अपने पूर्व जन्म में रावण का नाम जिन्धर्व खींची, सूपर्णखा राजकुमारी फूल देवी तथा लक्ष्मण जी का नाम पबूजी था. पबूजी के पिता का नाम था दठल राठोड. दठल राठोड की एक पत्नी थी जिससे उन्हें दो संताने प्राप्त हुई जिनमे उनका एक पुत्र था जिसका नाम बुरो था व दूसरी पुत्री प्रेमा.

दठल को एक बेहद खूबसूरत युवती से प्रेम हो गया तथा अपनी पहली पत्नी होने के बावजूद अब उससे विवाह करना चाहते थे. युवती भी उनसे विवाह करने के लिए तैयार हो गई परन्तु उसे अपनी एक शर्त रखी.

शर्त के अनुसार दठल कभी रात के समय उस पर नजर नहीं रखेगा तथा भूल से भी कभी यह नहीं पूछेगा की वह कहा गई थी अन्यथा वह सबकुछ छोड़ के चली जाएगी. दठल का उस कन्या के साथ विवाह सम्पन्न हुआ तथा उससे उसको पबूजी तथा सोना नाम की दो संताने प्राप्त हुई.

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कुछ दिनों तक सब कुछ समान्य था परन्तु एक दिन दठल ने अपनी पत्नी को दिए वचन को तोड़ दिया तथा उसका पीछा करता हुआ जंगल पहुंचा. वहां उसने अपनी पत्नी को एक शेर में परिवर्तित होते देखा जो अपने बच्चे को दूध पिला रही थी.

दठल ने अपने दिए हुए वचन को तोड़ दिया था इस कारण उसकी पत्नी उन्हें छोड़ कर चली गयी परन्तु जाते जाते वह अपने पुत्र पबूजी से पुनः कलमी नाम की एक चमत्कारी गाय के रूप में मिलने का वायदा कर गयी.

कुछ समय बाद दठल की मृत्यु हो गई तथा सारा राजपाट उसके पहले पत्नी से जन्मे पुत्र बुरो के हाथो में आ गया तथा उसने पबूजी को राजमहल से बहार निकाल दिया.

परन्तु पबूजी को देवी देवल ने कलमी नामक एक चमत्कारी गाय दी जो उनकी माता का ही अगला जन्म था. परन्तु साथ में यह शर्त रखी की उन्हें उस गाय की आजीवन रक्षा करनी होगी.

चमत्कारी गाय की वजह से अब बुरो का पबूजी के साथ रिश्ता और भी अधिक बिगड़ गया तथा जब एक दिन बुरो ने पबूजी पर आक्रमण किया तो उनका एक साथी जिन्धर्व खींची के पिता उस युद्ध में मारे गए. परन्तु वे पबूजी के परास्त न कर सके. बुरो ने जिन्धर्व खींची से अपने संबंध कायम रखने के लिए अपनी बहन की शादी उससे करा दी.

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लेकिन यह संधि दिखावट मात्र ही थी क्योकि जिन्धर्व खींची की नजरे तो बुरो की सम्पति तथा पबूजी की गाय पर थी. पबूजी के साहस एवं पराक्रम की चर्चा जो जब सिंध की राजकुमारी फूलवती के पास पहुंची तो उन्होंने अपने पिता से कहलवाकर एक दूत को पबूजी के पास विवाह का प्रस्ताव रखने के लिए भेजा. लेकिन पबूजी ने यह प्रस्ताव ठुकराते हुए कहा की वह आजीवन ब्रह्मचारी रहना चाहते है.

काफी मनाने के बाद पबूजी देवी फूलवती से विवाह करने के लिए राजी हुए. तथा विवाह के लिए वह सिंध देश की और जाने के लिए तैयार हुए परन्तु उन्हें इसके अपनी गाय को असुरक्षित छोड़ना पड़ा. हिन्दू धर्म के सात फेरे लेने के परम्परा में पहले तीन फेरो पर पत्नी संबंधित पती की पत्नी कहलाती है तथा बाकि चार फेरो में पति संबंधित पत्नी का पति कहलाता है.

तीन फेरे होने के बाद फूलवती तो पबूजी की पत्नी बन गयी परन्तु चौथे फेरे के समय देवल देवी प्रकट हुए तथा उन्होंने पबूजी को कहा की उन्होंने गाय की सुरक्षा का वचन दिया था अतः वह जिन्धर्व खींची से गाय की रक्षा करें क्योकि वह उसे चुराने का प्रयास कर रहा है. इस प्रकार अधूरे फेरे के कारण फूलवती तो पबूजी की पत्नी हो गई परन्तु पबूजी फूलवती की पति नहीं हो पाये.

पबूजी ने जिन्धर्व को युद्ध में परास्त कर गाय की रक्षा करी परन्तु उन्होंने उसका वध नहीं क्या क्योकि वह उनकी बहन प्रेमा का पती था. एक दिन जिन्धर्व खींची ने धोके से पबूजी की हत्या करने का प्रयास किया परन्तु एक चमत्कार हुआ और जिन्धर्व खींची अपने कार्य में सफल नहीं हो पाया. पबूजी अपनी गाय के साथ स्वर्ग लोक श्री राम के पास पहुंचे. वही गाय अपने अगले जन्म में सूर्य देव का घोड़ा बनी जिसके नासिका में रावण के प्राण थे.

2017-01-07T14:28:23+00:00
KhabarDekho Team
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