Friday , 20 April 2018
कर्नाटक के बल्लेबाज राहुल द्रविड़ को टीम इंडिया के ‘मिस्टर रिलायबल’ और ‘दीवार’ के विशेषण से भी नवाजा जाता था. द्रविड़ की डिफेंस इतनी मजबूत थी कि उनके विकेट को हासिल करना दुनिया के तमाम मशहूर गेंदबाजों की चाहत हुआ करती थी. प्रथम क्रम पर बल्लेबाजी करते हुए द्रविड़ ने टेस्ट और वनडे, दोनों में ऐसी पारियां खेलीं, जो उनके करियर के लिहाज से मील का पत्थर रहीं. इसमें पाकिस्तान के खिलाफ रावलपिंडी में खेली गई 270 रन की पारी (वर्ष 2004 )और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एडीलेड में खेली गई 233 रन की बेहतरीन पारी (वर्ष 2003) शामिल रही. इन दोनों टेस्ट मैचों में टीम इंडिया को जीत दिलाने में द्रविड़ के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता.
हालांकि वनडे के लिहाज से द्रविड़ की बैटिंग को आदर्श नहीं माना जाता था क्योंकि वे हवा में शॉट बेहद कम मौकों पर खेलते थे.लेकिन कई मौकों पर वे बेहद तेज गति से बैटिंग करके अपने आलोचकों को हैरान भी करते रहे. नवंबर 1999 में उन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ सचिन तेंदुलकर के साथ ऐसी ही पारी खेली थी. इस पारी में 153 गेंदों पर 15 चौकों और दो छक्कों की मदद से 153 रन ही बनाए थे. खास बात यह है कि सचिन (186रन) के साथ दूसरे विकेट के लिए उन्होंने 331 रन की साझेदारी की थी. इन दोनों की बल्लेबाजी की बदौलत भारत ने हैदराबाद में हुआ यह मैच 174 रन के विशाल अंतर से जीता था.
कोलकाता टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2001 में खेली गई राहुल द्रविड़ की 180 रन की बेहतरीन पारी का जिक्र भी जरूरी है. बेशक इस टेस्ट को ‘वेरी वेरी स्पेशल’ लक्ष्मण की 281 रन की पारी के लिए याद किया जाता है, लेकिन इसमें राहुल की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. मैच की दूसरी पारी में राहुल और लक्ष्मण के बीच पांचवें विकेट के लिए हुई 376 रन की साझेदारी ने ही भारत को करिश्माई जीत दिलाई थी. इस मैच में फॉलोआन खेलने के बावजूद भारत ने शानदार जीत दर्ज की थी. दरअसल लंबी पारियां खेलना बचपन से ही राहुल द्रविड़ की आदत थी. वे अपने विकेट के लिए गेंदबाजों से इतनी मशक्कत कराते थे कि कई बार वह झुंझलाकर रह जाते थे. टेस्ट करियर में राहुल ने पांच दोहरे शतक जमाए और पाकिस्तान के खिलाफ 270 उनका टॉप स्कोर रहा.
11 जनवरी 1973 को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में जन्मे राहुल शरद द्रविड़ ने जून 1996 में टेस्ट करियर का आगाज किया था. यह वही मैच था जिसमें टीम इंडिया के एक अन्य धमाकेदार बल्लेबाज सौरव गांगुली ने भी अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की थी. एक तरह से इस टेस्ट में द्रविड़, सौरव गांगुली की बल्लेबाजी की छाया में दबे-दबे से रहे. बेशक द्रविड़ ने लॉर्ड्स के मैदान पर अपने शुरुआती टेस्ट में 95 रन बनाए, लेकिन उनकी इस नायाब पारी को सौरव गांगुली की शतकीय पारी के आगे उतनी चर्चा नहीं मिल पाई जितनी इसे मिलनी चाहिए थे. गांगुली ने अपने पहले ही टेस्ट में शतक (131रन) बनाया और सारी वाहवाही लूट ले गए.
टेस्ट और वनडे, दोनों ही तरह के क्रिकेट में 10 हजार से अधिक रन बनाने वाले द्रविड़ को क्रिकेट का मिस्टर जेंटलमैन कहा जाता था. यही कारण रहा कि बल्लेबाजी को मजबूती देने के लिए टीम के हित में वर्ल्डकप-2003 में वे विकेटकीपर बल्लेबाज की हैसियत से खेले. द्रविड़ के रिकॉर्ड उनकी महानता की कहानी खुद बयां करते हैं. 164 टेस्ट में उन्होंने 52.31 के औसत से 13288 रन बनाए जिसमें 36 शतक शामिल रहे. इसी तरह 344 वनडे मैचों में द्रविड़ ने 39.16 के औसत से 10889 रन बनाए, जिसमें 12 शतकीय पारियां शामिल रहीं. यही नहीं, द्रविड़ को स्लिप का बेहतरीन क्षेत्ररक्षकों में भी शुमार किया जाता था. अपनी इसी कैचिंग की बदौलत उन्होंने टेस्ट में 210 कैच लपके.
करियर के शुरुआती दौर में द्रविड़ अपनी पारियों को शतक तक पहुंचाने में नाकाम हो रहे थे. लॉर्ड्स के अपने पहले टेस्ट में वे 95 और नॉटिंघम के दूसरे टेस्ट में 84 रन पर आउट हुए. बहरहाल, जनवरी 1997 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ जोहानिसबर्ग में टेस्ट करियर का पहला शतक (148 रन) बनाने के बाद द्रविड़ ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और शतक-दर-शतक जमाते गए. वर्ष 2012 में इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी द्रविड़ कोच के तौर पर क्रिकेट से जुड़े हुए हैं. पिछले साल जूनियर वर्ल्डकप के फाइनल तक पहुंची भारतीय टीम के ऋषभ पंत, ईशान किशन, सरफराज जैसे खिलाड़ियों की प्रतिभा को तराशने का काम द्रविड़ ने बखूबी किया है. ऋषभ पंत का चयन हाल ही में इंग्लैंड के खिलाफ भारत की टी20 टीम में किया गया है. भारत ‘ए’ की टीम के भी द्रविड़ कोच रहे हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि ‘द्रविड़ सर’ अपनी कोचिंग से टीम इंडिया के लिए नई बल्लेबाजी प्रतिभाएं सामने लाने का काम आगे भी करते रहेंगे.