कांग्रेस ने बुधवार को कहा कि अदाणी समूह के लेन-देन से संबंधित कुछ मामलों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सेबी के लिए ‘असाधारण उदार’ साबित हुआ है। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि साठगांठ वाले पूंजीवाद (क्रोनी कैपिटालिज्म) और उसका कीमतों, रोजगार व असमानताओं पर दुष्प्रभाव के विरुद्ध पार्टी की लड़ाई जारी रहेगी। कांग्रेस संचार प्रभारी जयराम रमेश ने अदाणी पर निशाना साधते हुए कहा, ”जब हम उन लोगों से सत्यमेव जयते सुनते हैं, जिन्होंने पिछले दशक में सिस्टम के साथ खिलवाड़ किया है, हेरफेर किया है और उसे नष्ट कर दिया है, तो सत्य हजारों मौत मर जाता है।”
उन्होंने कहा कि अदाणी समूह द्वारा लेनदेन से संबंधित कुछ मामलों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सेबी के लिए असाधारण उदार साबित हुआ है, कम से कम 14 अगस्त, 2023 की उसकी मूल जांच समयसीमा और तीन महीने बढ़कर तीन अप्रैल, 2024 तक हो गई है। रमेश ने कहा, यह उल्लेखनीय है कि सेबी सुप्रीम कोर्ट की विशेषज्ञ समिति के कहने के 10 महीने बाद भी अदाणी समूह और उसके सहयोगियों द्वारा प्रतिभूति कानूनों के उल्लंघन और स्टाक में हेरफेर की अपनी जांच पूरी करने में विफल रही है। उन्होंने कहा, ”यह स्पष्ट नहीं है कि लोकसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने के अलावा अगले तीन महीनों में क्या बदलेगा।”
रमेश ने कहा, विश्वसनीय समाचार स्त्रोतों द्वारा पर्दाफाश की एक श्रृंखला ने सेबी की ”सौम्य नजर” के तहत संचालित अदाणी समूह की अवैध गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित किया है। अपने बयान में कांग्रेस नेता ने बताया कि हालिया पर्दाफाश में आर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) शामिल है, जिसमें 13 बेनामी मुखौटा कंपनियों में से दो के वास्तविक स्वामित्व को उजागर किया गया है, जिन्हें सेबी वर्षों की जांच के बावजूद पहचानने में विफल रही। उन्होंने आरोप लगाया कि चांग चुंग-लिंग और नासिर अली शाबान अहली के पास अदाणी इंटरप्राइजेज, अदाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनमिक जोन, अदाणी पावर और अदाणी ट्रांसमिशन में 8-14 प्रतिशत बेनामी हिस्सेदारी थी।
रमेश ने दावा किया कि यह सब सेबी के न्यूनतम शेयरधारिता कानूनों का घोर उल्लंघन करते हुए मारीशस, संयुक्त अरब अमीरात और ब्रिटिश विर्जिन आइलैंड्स में मुखौटा कंपनियों के माध्यम से किया गया। माकपा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निराशाजनक बताया और आरोप लगाया कि सेबी अदाणी समूह के विरुद्ध आरोपों की तेजी से जांच करने के अपने दायित्व को पूरा नहीं कर रही है। माकपा पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा कि सेबी ने अपने नियमों को बदल दिया था, जिससे वे अधिक अपारदर्शी हो गए और अदालत ने उससे प्राप्त शिकायतों पर कार्रवाई नहीं करने के लिए कोई सवाल नहीं किया। इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने अपनी विश्वसनीयता नहीं बढ़ाई है।