मुख्यमंत्री के आदेश की अवहेलना का दुष्परिणाम, गोमती नदी की दुर्दशा

गौरव सिंह चौहान (लखनऊ): वर्ष 2017 में प्रदेश में जब भाजपा सरकार बनी तो प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने गोमती नदी की साफ-सफाई को लेकर व नदी में गिरने वाले गंदे नालों को लेकर नगर निगम व सम्बंधित विभाग के आला-अधिकारियों को सख्त आदेश दिए कि गोमती नदी में एक भी गंदा नाला नहीं गिरना चाहिए, अब जब योगी सरकार दोबारा सत्ता में आ चुकी है लेकिन गोमती नदी के हालात जस के तस हैं। मुख्यमंत्री के सख्त आदेश के बावजूद नगर निगम व संबंधित विभाग के अधिकारियो के कानों पर जूं भी नहीं रेगी और नतीजा यही है की गोमती अब गंदे नालो के कारण अपने अस्तित्व से विलुप्त होती जा रही है।

जबकि मुख्यमंत्री की मंशा साफ है लेकिन अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से मुकर होकर सरकार की किरकिरी कराने पर उतारू हैं। हर वर्ष सरकार गोमती नदी की साफ-सफाई को लेकर करोडो रुपए खर्च करती है। लेकिन बावजूद इसके ना तो नदी साफ होती है और ना ही नदी में गिरने वाले गंदे नालों का गिरना बंद हो रहा है। आखिर क्यों जब मुख्यमंत्री द्वारा नदी की साफ-सफाई व गंदे नालों को लेकर सख्त आदेश दिए जा चुके हैं। तो नगर निगम व संबंधित विभाग के अधिकारियों द्वारा अब तक आदेश का निर्वहन क्यों नहीं किया गया?

इस प्रकरण से एक बात तो स्पष्ट है कि या तो निगम के अधिकारी अपने आप को मुख्यमंत्री से ऊपर समझते हैं या उन्हें किसी का डर नहीं लेकिन जो भी हो गोमती में गिरने वाले गंदे नालों की वजह से गोमती नदी का अस्तित्व अब सिर्फ गंदे नालो में निहित होता जा रहा है और गोमती नदी नदी ना होकर गंदे नाले में तब्दील होती नजर आ रही है।

हालात ये हो गए है की आप अगर गोमती के आसपास से गुजर जाइए तो आपको शायद यही लगेगा कि आप किसी नाले के किनारे से गुजर रहे हैं क्योंकि गोमती में गंदे नालों के गिरने से इतनी गंदी बदबू आती है कि समझना मुश्किल है नदी है या गंदा नालाद्य कुल मिलाकर सरकार को भी समझना होगा कि अगर उनके द्वारा दिए गए आदेशों का निर्वहन नहीं हो रहा है। ऐसे अधिकारियों के खिलाफ जो मुख्यमंत्री के आदेश को सिर्फ और सिर्फ बतकही तक सीमित समझते हैं सख्त से सख्त कार्यवाही करनी चाहिए क्योंकि नदियां भी हमारी संस्कृति की विरासत हैं और गोमती भी उनमें से एक है!

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